जो उस बे-रहम पर अपना दिल-ए-ख़ाना-ख़राब आया गए सब्र-ओ-तहम्मुल होश-ओ-ताक़त इज़्तिराब आया हवा बदली घटा छाई वो बारिश का सहाब आया मगर अब तक न ऐ पीर-ए-मुग़ाँ दाैर-ए-शराब आया सर-ए-महशर वो यार-ए-शो'ला-रू जब बे-नक़ाब आया तो अहल-ए-हश्र चीख़ उट्ठे ज़मीं पर आफ़्ताब आया सर-ए-महफ़िल अदू से वस्ल का इक़रार करना था तुम्हें कुछ भी हया आई तुम्हें कुछ भी हिजाब आया शब-ए-फ़ुर्क़त किसी ने भी न मुझ नाकाम को पूछा न तुम आए न मौत आई न सब्र आया न ख़्वाब आया जफ़ा-जू संग-दिल बे-रहम है वा'दा-शिकन है वो तू आया भी तो किस पर ऐ दिल-ए-ख़ाना-ख़राब आया ग़ज़ब है यार ने सर काट कर भेजा है क़ासिद का जवाब आया हमारे नामे का तो ये जवाब आया हुई तौबा भी टुकड़े टुकड़े मिस्ल-ए-साग़र-ओ-मीना हमारे सामने ऐ शैख़ जब दाैर-ए-शराब आया जो छू ली ज़ुल्फ़-ए-पुर-ख़म मैं ने बरहम हो गए मुझ से हँसी की बात थी साहब मगर तुम को इ'ताब आया खुला सब हाल हम पर इस जहाँ की बे-सबाती का मिटा सत्ह-ए-समंदर पर उभर कर जो हबाब आया अभी तक है वही ग़फ़लत सफ़ेदी बालों पर आई उठो बहर-ए-ख़ुदा 'साबिर' कि सर पर आफ़्ताब आया