जोश पर यूँ जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार आ ही गया देख कर उन को बरहना मुझ को प्यार आ ही गया ग़ैर जब ख़ल्वत से निकला दौड़ कर मैं ने कहा दूसरा भी आप का उमीद-वार आ ही गया था नज़ाकत से बहुत मजबूर फिर भी बाद-ए-मर्ग साला उठता बैठता सू-ए-मज़ार आ ही गया उस का सीने से लिपटना था कि तस्कीं हो गई बे-क़रारी को मिरी कुछ तो क़रार आ ही गया इंतिज़ारी में किसी के रात भर तड़पा किए झूटे वा'दे का किसी के ए'तिबार आ ही गया उन का बीमार-ए-मोहब्बत सुनते ही एलान-ए-दीद थाम कर दिल गिरता पड़ता बे-क़रार आ ही गया ख़ौफ़-ए-बदनामी से गो अक्सर छुपाया जुर्म को लब पर उन का नाम फिर भी बार बार आ ही गया