जुदा हुए तो जुदाई में ये कमाल भी था कि उस से राब्ता टूटा भी था बहाल भी था वो जाने वाला हमें किस तरह भुलाएगा हमारे पेश-ए-नज़र एक ये सवाल भी था ये अब जो देख रहे हो ये कुछ नया तो नहीं ये ज़िंदगी का तमाशा गुज़िश्ता साल भी था ये दाग़ लिक्खा था सैलाब के मुक़द्दर में मिरा मकान तो पहले से ख़स्ता-हाल भी था