तेरे एहसानों का हक़ पूरा अदा करते हैं भरने लगते हैं तो ज़ख़्मों को हरा करते हैं नींद को हम कभी ज़ाएअ' नहीं होने देते ले के बिस्तर से हसीं ख़्वाब उठा करते हैं इश्क़ में हार के मर जाना कोई इश्क़ नहीं दम-ए-आख़िर भी तो बीमार दवा करते हैं जश्न-ए-शाही में ग़रीबों को भी दावत देना चाँद के साथ सितारे भी ज़िया करते हैं बस यही आख़िरी लग़्ज़िश है हमारी 'अंजुम' सब यही सोच के हर बार ख़ता करते हैं