जुदा जो पहलू से वो दिलबर यगाना हुआ तपिश की याँ तईं दिल ने कि दर्द शाना हुआ जहाँ को फ़ित्ने से ख़ाली कभू नहीं पाया हमारे वक़्त में तो आफ़त ज़माना हुआ ख़लिश नहीं कसो ख़्वाहिश की रात से शायद सरिश्क-ए-यास के पर्दे में दिल रवाना हुआ हम अपने दिल की चले दिल ही में लिए याँ से हज़ार हैफ़ सर-ए-हर्फ़ उस से वा न हुआ खुला नशे में जो पगड़ी का पेच उस की 'मीर' समंद-ए-नाज़ पे एक और ताज़ियाना हुआ