लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है कौन से शहर में होता है किधर होता है उस के कूचे में है नित सूरत-ए-बेदाद नई क़त्ल हर ख़स्ता बा-अंदाज़-ए-दिगर होता है नहीं मालूम कि मातम है फ़लक पर किस का रोज़ क्यूँ चाक गिरेबान-ए-सहर होता है वूहीं अपनी भी है बारीक-तर-अज़-मू गर्दन तेग़ के साथ यहाँ ज़िक्र-ए-कमर होता है कर के मैं याद दिल अपने को बहुत रोता हूँ जब किसी शख़्स का दुनिया से सफ़र होता है उस की मिज़्गाँ का कोई नाम न लो क्या हासिल मेरा इन बातों से सुराख़ जिगर होता है 'मुसहफ़ी' हम तो तिरे मिलने को आए कई बार ऐ दिवाने तू किसी वक़्त भी घर होता है