जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को अज़ीज़ क्यूँ न रखें ज़िंदगी के हासिल को निहाँ अगरचे है महफ़िल से सोज़-ए-दिल मेरा मगर ये राज़ है मालूम शम-ए-महफ़िल को वो तूल खींचा बला का तिरे तग़ाफ़ुल ने कि सब्र आ ही गया मेरे मुज़्तरिब दिल को कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को वो काम मेरा नहीं जिस का नेक हो अंजाम वो राह मेरी नहीं जो गई हो मंज़िल को ख़बर हुई न उन्हें मेरे मुज़्तरिब दिल की ग़लत ख़याल है ये दिल से राह है दिल को बला की होती है 'वहशत' की भी ग़ज़ल-ख़्वानी कि इक सुरूर सा होता है अहल-ए-महफ़िल को