जुदा वो होते तो हम उन की जुस्तुजू करते अलग नहीं हैं तो फिर किस की आरज़ू करते मिला न हम को कभी अर्ज़-ए-हाल का मौक़ा ज़बाँ न चलती तो आँखों से गुफ़्तुगू करते अगर ये जानते हम भी उन्हीं की सूरत हैं कमाल-ए-शौक़ से अपनी ही जुस्तुजू करते जो ख़ाक चाक-ए-जिगर है तो पुर्ज़े पुर्ज़े दिल जुनूँ के होश में किस किस को हम रफ़ू करते दिल-ए-हज़ीं के मकीं तू अगर सदा देता तिरी तलाश कभी हम न कू-ब-कू करते कमाल-ए-जोश-ए-तलब का यही तक़ाज़ा है हमें वो ढूँडते हम उन की जुस्तुजू करते नमाज़-ए-इश्क़ तुम्हारी क़ुबूल हो जाती अगर शराब से तुम ऐ 'रतन' वज़ू करते