जुड़े हुए हैं परी-ख़ाने मेरे काग़ज़ से जो उठ रहे हैं ये अफ़्साने मेरे काग़ज़ से कतरता रहता है मिक़राज़-ए-चश्म से मुझ को बनाना क्या है उसे जाने मेरे काग़ज़ से क़लम ने नोक-ए-अलम क्या रखी ब-चश्म-ए-दिल छलकने लग गए पैमाने मेरे काग़ज़ से रक़म करूँ भी तो कैसे मैं दास्तान-ए-वफ़ा हुरूफ़ फिरते हैं बेगाने मेरे काग़ज़ से अभी रखी भी नहीं लौ चराग़ पर मैं ने लिपट गए कई परवाने मेरे काग़ज़ से कुदाल-ए-ख़ामा से बोता हूँ मैं जुनूँ 'सारिम' सो उगते रहते हैं दीवाने मेरे काग़ज़ से