जुगनूओं पर ये रात भारी है अब सितारों पे ज़िम्मे-दारी है नफ़रतों का हुजूम फैला है सल्तनत ये कहाँ हमारी है टूट के थक गया हूँ मैं लेकिन हौसलों की उड़ान जारी है हम ने काँधों पे दिन उठाया है रात आँखों में ही गुज़ारी है सब पे क़ुदरत ने क़हर ढाया है सब ने फिर आरती उतारी है