कभी ईमान की बातें कभी किरदार की बातें चलो छोड़ो हटो करने लगे बेकार की बातें बताने लग गई हैं अस्ल क़ातिल को मसीहा ये भरोसे के कहाँ क़ाबिल रहीं अख़बार की बातें न जाने कितने ही रिश्तों को बे-घर कर चुकी हैं ये हमारे घर की चौखट पे खड़ी बाज़ार की बातें तमामी नफ़रतों पर गुफ़्तुगू की उम्र भर अब तो चलो आओ करें थोड़ी वफ़ा-ओ-प्यार की बातें