जूँही लब खोलता है वो तो जादू बाँधता है हसीन अल्फ़ाज़ के पैरों में घुंघरू बाँधता है अँधेरी शब के दामन में दमकते हैं सितारे ख़याल-ए-यार जब पलकों पे जुगनू बाँधता है मिरी परवाज़ को मशरूत कर के नेक सय्याद क़फ़स गर खोल देता है तो बाज़ू बाँधता है सुलगता खौलता माहौल और ख़ुश्की ग़ज़ल की कि दिल इक आस का छप्पर लब-ए-जू बाँधता है 'नक़ीब' अशआ'र अपने ज़िंदगानी के सफ़र में कोई ज़ाद-ए-सफ़र में जैसे सत्तू बाँधता है