जुज़ नदामत मलाल क्या होगा हासिल-ए-इश्ति'आल क्या होगा मैं कि ख़ाना-ब-दोश हूँ मुझ को हिजरतों का मलाल क्या होगा ख़ामुशी जब कलाम करती हो फिर वहाँ क़ील-ओ-क़ाल क्या होगा एक मुद्दत से हिज्र लाहक़ है कोई मुझ सा निढाल क्या होगा जिस पे वा'दा है रब की बख़्शिश का क़तरा-ए-इंफ़ि'आल क्या होगा ज़िद पे आए हुए हैं अश्क मिरे ज़ब्त अब तेरा हाल क्या होगा दोस्त तरकश-ब-दोश हैं 'शाज़ी' ज़ख़्म का इंदिमाल क्या होगा