जुम्बिश-ए-अबरू-ए-क़ातिल कभी ऐसी तो न थी बुलबुल-ए-जाँ मिरी बिस्मिल कभी ऐसी तो न थी वादा-ए-वस्ल किया किस ने दिया दम किस ने बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी ऐ शह-ए-हुस्न रक़ीब आप का क़ादिर निकला फ़ौज उश्शाक़ की बे-दिल कभी ऐसी तो न थी मेहरबाँ आए किधर आज किधर निकला चाँद रश्क-अफ़्लाक ये महफ़िल कभी ऐसी तो न थी वो मह-ए-नौ मगर आया किसी महताबी पर चाँदनी ऐ मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी अपने काशाने से क्यूँ ग़ैर के घर हो आए माह-रू आप की मंज़िल कभी ऐसी तो न थी किस तरह वस्ल हुआ उस गुल-ए-ज़ेबा से 'नसीम' ख़ुश-नसीबी मुझे हासिल कभी ऐसी तो न थी