जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ मगर ये जश्न सर-ए-कूचा-ए-बहार हुआ हर एक सज्दे में दिल को तिरा ख़याल आया ये इक गुनाह इबादत में बार बार हुआ समेट ली हैं मोहब्बत ने सारी परवाज़ें दिल-ओ-दिमाग़ में कैसा ये इंतिशार हुआ नहीं बुझाया हवाओं ने पहली बार चराग़ ये सानेहा तो मिरे साथ बार बार हुआ किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम वो आ गया प कहाँ ख़त्म इंतिज़ार हुआ अँधेरी शब के मुक़द्दर में इक सवेरा था ये राज़ मुझ पे दम-ए-सुब्ह आश्कार हुआ जो तुझ में डूब के देखा तो पा लिया ख़ुद को 'अलीना' यूँ मिरा फिर मुझ पे इख़्तियार हुआ