जुनूँ ब-ख़ैर हर आफ़त से कामराँ निकले तलाश-ए-मंज़िल-ए-जानाँ में हम जहाँ निकले हम आ गए रसन-ओ-दार तक मोहब्बत में तुम्हारे क़ौल फ़क़त ज़ेब-ए-दास्ताँ निकले सितम-शिआ'रों ने हर इक सितम के बाद कहा हमारे दिल के अभी हौसले कहाँ निकले निकलना उन का सजा कर वो माँग में अफ़्शाँ कि जैसे शब में सितारों का कारवाँ निकले न जाने कौन सी ताक़त थी जिस ने रोक दिया जुनूँ की राह में हम जब भी ना-गहाँ निकले मिरी तबाही का अफ़्साना बन गए हमदम वो बाल-ओ-पर जो पस-ए-शाख़-ए-आशियाँ निकले लगा के ख़ाना-ए-'हसरत' में आग कहते हैं इस आग से न कभी देखना धुआँ निकले