जुनून-ए-शौक़ में कुछ ऐसा खो गया हूँ मैं कि वो नज़र में हैं और उन को ढूँढता हूँ मैं कफ़न से इस लिए अब मुँह को ढाँपता हूँ मैं गुनाहगार हूँ दुनिया से जा रहा हूँ मैं तिरी तलाश तिरी जुस्तुजू तिरी धुन में अदम से आलम-ए-हस्ती में आ गया हूँ मैं कफ़न की ऊपरी चादर भी खिंच गई तन से लुटा हूँ जब सर-ए-मंज़िल पहुँच गया हूँ मैं न जाने ये मिरी क़िस्मत है या तिरी हिकमत जो मिल गया है कहीं तू तो खो गया हूँ मैं न रौशनी है कोई राह में न रहबर है अकेला मंज़िल-ए-मक़्सद पे जा रहा हूँ मैं ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी है ऐ 'नश्तर' किसी की एक झलक को तरस रहा हूँ मैं