जुनून-ए-शौक़ मिरी हसरतों से कम क्यों हो वफ़ा की राह में ये लग़्ज़िश-ए-क़दम क्यों हो किसी की चश्म ही बे-आब है तो नम क्यों हो नहीं है लज़्ज़त-ए-एहसास-ए-ग़म तो ग़म क्यों हो कमाल-ए-हुस्न हैं रुस्वाइयाँ मोहब्बत की रहीन-ए-बुल-हवसी इश्क़ का भरम क्यों हो सितम-रसीदा-ए-दौराँ बहुत हैं दुनिया में मिरे ही हाल पे ये बारिश-ए-करम क्यों हो हज़ार ख़ूगर-ए-इज्ज़-ओ-नियाज़ हूँ लेकिन सर-ए-नियाज़ हर इक आस्ताँ पे ख़म क्यों हो ब-क़द्र-ए-ज़ौक़-ए-तलब मय अता हो रिंदों को ये मै-कदा है यहाँ रस्म-ए-बेश-ओ-कम क्यों हो हर एक चेहरा-ए-गुल-रंग पर खिला हूँ 'मजीद' तो फिर लहू से मिरी दास्ताँ रक़म क्यों हो