महफ़िल-ए-दार में हंगामा-ए-सर बाक़ी है शुक्र है सिलसिला-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र बाक़ी है रात के बा'द भी रात आने का डर बाक़ी है कुछ सही फिर भी इक इमकान-ए-सहर बाक़ी है दिल कहाँ दिल की जगह उस की नज़र बाक़ी है आइना टूट गया आइना-गर बाक़ी है दिल की दहलीज़ से रुख़्सत हुईं यादें कितनी इक तिरी नीम-निगाही का असर बाक़ी है राहबर साथ हैं एक एक क़दम पर लेकिन ये तो बतलाए कोई कितना सफ़र बाक़ी है दिल लहू हम ने किया हाथ लहू हम ने किए फिर भी इक सिलसिला-ए-कार-ए-हुनर बाक़ी है किस लिए हादसा-ए-वक़्त से डरते हो 'मजीद' संग आते ही रहेंगे जो ये सर बाक़ी है