जुनूँ ही से मगर बिल्कुल दिल-ए-दीवाना ख़ाली है न मानूँगा असर से ना'रा-ए-मस्ताना ख़ाली है मुरव्वत से तिरी हम बेकसों की शर्म रह जाती भरी महफ़िल में साक़ी इक यही पैमाना ख़ाली है दिला डर है कहीं का'बे पहुँच कर तू न कह बैठे कि वापस चल यहाँ से अब तो ये बुत-ख़ाना ख़ाली है हमें ज़ौक़-ए-असीरी छोड़ता है कब गुलिस्ताँ में क़फ़स में जब तक ऐ सय्याद कोई ख़ाना ख़ाली है ये माना हम ने 'जौहर' शहर छोड़ा पर कहाँ जाएँ वो तेरे दम से था आबाद अब वीराना ख़ाली है