जुनूँ से बरसर-ए-पैकार होती जा रही है मिरी दीवानगी हुशियार होती जा रही है कभी मुझ में कोई बुनियाद-ए-ग़म रक्खी गई थी वो बढ़ कर अब दर-ओ-दीवार होती जा रही है छुपा बैठा हूँ मैं अपने ही अन्दर और बाहर नई दुनिया कोई तय्यार होती जा रही है ख़याल आने लगे हैं दिल में जाने कैसे कैसे मिरी तन्हाई अब बाज़ार होती जा रही है मैं ख़ुद को जिस क़दर आसान करता जा रहा हूँ ये दुनिया उस क़दर दुश्वार होती जा रही है बहुत दिन से नहीं चीरा किसी चट्टान का दिल सलाहिय्यत मिरी बेकार होती जा रही है मैं दुनिया की नज़र में मोहतरम होने लगा हूँ मिरी नज़रों में दुनिया ख़ार होती जा रही है