जुनून-ए-अव्वलीं शाइस्तगी थी वही पहली मोहब्बत आख़िरी थी जहाँ हम फिर से बसना चाहते थे वो बस्ती हो के दुनिया हो चुकी थी कुशादा थे बहुत बाज़ू-ए-वहशत ये ज़ंजीर-ए-ख़िरद उलझी हुई थी कभी हर लफ़्ज़ के सौ सौ मआ'नी कभी पूरी कहानी अन-कही थी सहर आग़ाज़-ए-शब इतमाम-ए-हुज्जत अजब 'ज़हरा' की वज़-ए-ज़िंदगी थी