जुनून-ए-इश्क़-ए-सर बेदार भी है ग़ुरूर-ए-बादा-ए-सरशार भी है ख़याल-ए-तुर्रा-ए-शब-रंग मुझ को कभी इक साया-ए-दीवार भी है मुझे तस्लीम ये गर्दूं-रकाबी बुलंदी इक फ़राज़-ए-दार भी है ये अस्र-ए-नौ का शौक़-ए-चारा-साज़ी पए-दरमाँ ग़म-ए-बीमार भी है तमीज़-ए-ख़ार-ओ-गुल दस्तूर-ए-गुलचीं निगाह-ए-बाग़बाँ में ख़ार भी है चमन में खुल गईं नर्गिस की आँखें बयान-ए-ख़्वाब में झंकार भी है