जुस्तुजू जब तिरी नहीं होगी मेरी मंज़िल कोई नहीं होगी मैं हूँ छोटा तो क्या ये लाज़िम है मेरी ख़्वाहिश बड़ी नहीं होगी यूँ तो जुगनू भी हैं हसीं लेकिन इन से तो रौशनी नहीं होगी कोई चेहरा खिला नहीं लगता दिल में शायद ख़ुशी नहीं होगी अब के बस्ती में है जो सन्नाटा ख़त्म ये ख़ामुशी नहीं होगी अब चलें दश्त को वहाँ शायद इतनी बे-रौनक़ी नहीं होगी ख़्वाब 'मसऊद' क्या वो देखेगा आँख जिस की लगी नहीं होगी