आह अब तक तो बे-असर न हुई कुछ तुम्हीं को मिरी ख़बर न हुई शाम से फ़िक्र-ए-सुब्ह क्या शब-ए-हिज्र मर रहेंगे अगर सहर न हुई किस से दिल का सुराग़ पाएँगे हम तू ही ऐ आरज़ू अगर न हुई ख़ल्क़ समझी मुझी को दीवाना चारा फ़रमाए चारागर न हुई कुछ नज़र कह गई ज़बाँ न खुली बात उन से हुई मगर न हुई शिकवा क्या उन से ख़ून-ए-नाहक़ का ज़िंदगी थी हुई बसर न हुई हश्र का दिन भी ढल गया 'फ़ानी' दिल की रूदाद मुख़्तसर न हुई