क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़ लाज़िम नज़र है गुलशन-ए-ईजाद की तरफ़ पाए जो तेरे गोशा-ए-दस्तार की हवा कुमरी उड़ी न तुर्रा-ए-शमशाद की तरफ़ बे-अस्ल ऐ फ़लक नज़र आता है तू मुझे करता हूँ ग़ौर जब तिरी बुनियाद की तरफ़ गुलशन में कौन बुलबुल-ए-नालाँ को दे पनाह गुलचीं ओ बाग़बाँ भी हैं सय्याद की तरफ़ मज़लूम हूँ मगर नहीं मिलता कोई गवाह हैं अहल-ए-हश्र इस सितम-ईजाद की तरफ़ नादाँ कहीं पनाह नहीं मौत से तुझे क्या देखता है क़िला-ए-फ़ौलाद की तरफ़ हम-जिंस को ज़रूर है हम-जिंस का ख़याल रग़बत न हो बशर को परी-ज़ाद की तरफ़ मज़मूँ कमर का हाथ न आया जो दहर में जाना पड़ा मुझे अदम-आबाद की तरफ़ तकलीफ़ जू-ए-शीर की दे कर जो थी ख़जिल शीरीं न देख सकती थी फ़रहाद की तरफ़ दीवानगी का ज़ोर तमाशा है ऐ परी फ़स्साद की निगाह है हद्दाद की तरफ़ गर्दन झुकाए शौक़-ए-शहादत में हूँ रवाँ दिल ले चला है कूचा-ए-जल्लाद की तरफ़ उमीद-वार चश्म-ए-इनायत का है ग़रीब देखो तो इक नज़र दिल-ए-नाशाद की तरफ़ नासेह अगर सितम न सहें हम तो क्या करें दिल दौड़ता है यार की बे-दाद की तरफ़ बुलबुल समझ रही है कि गुलहा-ए-ख़ंदा-रू रखते हैं कान नाला-ओ-फ़रियाद की तरफ़ फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से अपनी तबीअत है बे-नियाज़ रू-ए-तलब कभी न हुआ दाद की तरफ़ वाइज़ से सुन के क़ामत-ए-तौबा की ख़ूबियाँ दौड़ा ख़याल इक क़द-ए-आज़ाद की तरफ़ भूले हुए हैं सारे ज़माने की नेमतें मैलान-ए-दिल जिन्हें है तेरी याद की तरफ़ या शाह-ए-जिन्न-ओ-इंस 'असर' पर भी इक नज़र रखता है आँख आप की इमदाद की तरफ़