काम है जम से न मतलब जाम से आश्ना हैं लब तुम्हारे नाम से लब-ब-लब हूँ साक़ी-ए-गुलफ़ाम से आरियत ले लें मुक़द्दर जाम से घर बनाना है किसी की याद का काम लेना है दिल-ए-नाकाम से दिल भी आँखों की तरह मुश्ताक़ है लो उतर आओ तुम अपने बाम से छा रही है मय-कशों पर बे-ख़ुदी क्या कहा शीशे ने झुक कर जाम से इक सितमगर से लड़ाता हूँ निगाह जाम को टकरा रहा हूँ जाम से ईद है हंगामा-ए-महशर नहीं वो मिलेंगे आज ख़ास-ओ-आम से क़ब्र भी जन्नत है मोमिन के लिए चल के 'मुज़्तर' सो रहो आराम से