कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है हूरों पे मर रहा है ये शहवत-परस्त है दिल साफ़ हो तो चाहिए मअ'नी-परस्त हो आईना ख़ाक साफ़ है सूरत-परस्त है दरवेश है वही जो रियाज़त में चुस्त हो तारिक नहीं फ़क़ीर भी राहत-परस्त है जुज़ ज़ुल्फ़ सूझता नहीं ऐ मुर्ग़-ए-दिल तुझे ख़ुफ़्फ़ाश तू नहीं है कि ज़ुल्मत-परस्त है दौलत की रख न मार-ए-सर-ए-गंज से उम्मीद मूज़ी वो देगा क्या कि जो दौलत-परस्त है अन्क़ा ने गुम किया है निशाँ नाम के लिए गुम-गश्ता कौन कहता है शोहरत-परस्त है ये 'ज़ौक़' मय-परस्त है या है सनम-परस्त कुछ है बला से लेक मोहब्बत-परस्त है