तुम से मुल्तजी हो कर क्या बताएँ क्या पाया दिल के मुद्दई' थे हम दिल का मुद्दआ' पाया इब्तिदा-ए-आलम से इंतिहा-ए-आलम तक तुम को इब्तिदा देखा तुम को इंतिहा पाया सादगी-ए-दिल देखो ए'तिबार कर बैठे हो गए उसी के हम जिस को आश्ना पाया हम से पूछते क्या हो अपने दिल से ख़ुद पूछो हम ने तुम से क्या पाया तुम ने हम से क्या पाया आँख खोलते ही क्यूँ इस क़दर मसर्रत है सुब्ह-दम 'मुनव्वर' क्या तुम ने कुछ पड़ा पाया