कब कौन कहाँ किस लिए ज़ंजीर-बपा है ये उक़्द-ए-असरार-ए-अज़ल किस पे खुला है किस भेस कोई मौज-ए-हवा साथ लगा ले किस देस निकल जाए ये दिल किस को पता है इक हाथ की दूरी पे हैं सब चाँद सितारे ये अर्श-ए-जाँ किस दम-ए-दीगर की अता है आहंग-ए-शब-ओ-रोज़ के नैरंग से आगे दिल एक गुल-ए-ख़्वाब की ख़ुश्बू में बसा है ये शहर-ए-तिलिस्मात है कुछ कह नहीं सकते पहलू में खड़ा शख़्स फ़रिश्ता कि बला है हर सोच है इक गुम्बद-ए-एहसास में गर्दां और गुम्बद-ए-एहसास में दर हर्फ़-ए-दुआ है ये दीद तो रूदाद-ए-हिजाबात है 'आली' वो माह-ए-मुकम्मल न घटा है न बढ़ा है