कब रुका दौर-ए-जाम याद नहीं तौबा कब आई काम याद नहीं कब परेशाँ हुईं तिरी नज़रें और कब आई शाम याद नहीं लज़्ज़त-ए-गुफ़्तुगू है याद अब तक कौन था हम-कलाम याद नहीं कब तसव्वुर से मेरे गुज़रा था वो नसीम-ए-ख़िराम याद नहीं रहज़न-ए-होश उन में कौन बना वो निगाहें कि जाम याद नहीं यूँ 'वसी' का पता बताते हैं दिल में रहता है नाम याद नहीं