ख़ुलूस-ए-रिंद से मत इंतिक़ाम ले साक़ी शराब-ए-ग़म जो नहीं है तो जाम ले साक़ी नहीं जहाँ में कोई और ग़म के मारों का ये मै-कदा है मोहब्बत से काम ले साक़ी निगाह-ए-लुत्फ़ से उस को नवाज़ता है तुझे जो मय-कदे में तक़द्दुस का नाम ले साक़ी शिकस्त-ए-जाम का सुनते हैं वक़्त आ पहूँचा अब अपने हाथ से दिल अपना थाम ले साक़ी अगर तुझे नहीं मंज़ूर एहतिराम अपना चला वो अपने 'वसी' का सलाम ले साक़ी