कब तलक रुस्वा करेगा ऐ मुक़द्दर सो जा

कब तलक रुस्वा करेगा ऐ मुक़द्दर सो जा
पढ़ चुके तेरा लिखा ऐ मिरे हम-सर सो जा

रात भर दस्तकें दरवाज़ा-ए-दिल पर पैहम
कब तलक हम को सताएगा सितमगर सो जा

वो नहीं आएँगे कब तक तू भला धड़केगा
ऐ मिरे दिल मिरी क़िस्मत के सिकंदर सो जा

ख़ूगर-ए-इश्क़ तू मदहोश-ए-मोहब्बत हर-दम
ऐ मिरे क़ल्ब मिरे मस्त क़लंदर सो जा

फिर शब-ए-हिज्र वही दर्द की यलग़ार वही
सब्र और शुक्र की फिर तान के चादर सो जा

कितने शब-ख़ून किए क़ाफ़िले लूटे कितने
रहज़नी कर ली बहुत अब तो ऐ रहबर सो जा

शब की तन्हाई में सग-हा-ए-तमन्ना मत छेड़
शोर-ओ-ग़ुल से बपा हो जाएगा महशर सो जा

बहर-ए-ग़म तुझ को कभी ग़र्क़ नहीं कर सकता
वुसअत-ए-ज़र्फ़ बढ़ा पी के समुंदर सो जा

माज़ी की धुंद में मत झाँक कहा मान मिरा
रात भर बरसेंगे फिर याद के पत्थर सो जा

फिर वही रत-जगे ता-सहर तड़पना 'शाहिद'
इश्क़ में तेरा बहुत हाल है अबतर सो जा


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