काम न आई कुछ भी यारो मेरे रक़ीबों की बद-ख़ूई फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से हुआ ज़ियादा इश्क़ मिरा उस की ख़ुश-रुई हँस कर देखे तो खिल जाऊँ वो मुँह फेरे तो मुरझाऊँ मेरे एहसासात को उस ने कर डाला छूई-मूई आप के मरहम से तो मेरे ज़ख़्म हुए हैं और ज़ियादा आप ही ठहरे चारागर तो किस को मजाल-ए-चारा-जूई ख़िज़ाँ में भी हूँ चाक-गरेबाँ रफ़ू करूँ आख़िर मैं कब तक कहाँ का दामन कैसी बख़िया भाड़ में जाए धागा सूई अल्लह से है तुझ को उल्फ़त हूरों से है तुझ को रग़बत ये तो बता ज़ाहिद सज्दे में होती है कैसे यकसूई मेरे ही कहने पर 'शाहिद' छुप कर मिलने आया था वो लोगों ने ये बात ज़रा सी शहर में कर दी रूई रूई