कभी ऐसा भी होता है किनारे टूट जाते हैं करो जिन पर भरोसा वो सहारे टूट जाते हैं कभी महँगाई डसती है कभी तिरछी नज़र उन की हमारे हौसले अज़-ख़ुद ही सारे टूट जाते हैं ये अपनी अपनी क़िस्मत है मुक़द्दर है हर इक शय का नज़र से जो उतर जाते हैं तारे टूट जाते हैं यक़ीं कैसे करूँ अपने इरादों पर 'रसा' साहिब इरादे जब भी करता हूँ वो सारे टूट जाते हैं