अक़ीदत ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत नहीं है दिलों में वो पहली सी चाहत नहीं है मिरे प्यार की कोई क़ीमत नहीं है मोहब्बत है माल-ए-तिजारत नहीं है नहीं ख़ाली है ये जहाँ मिन्नतों से मगर पहली सी अब क़यादत नहीं है चले आना जब भी करे आप का दिल मिरे दिल में कोई कुदूरत नहीं है कोई काम हो सख़्त-ओ-दुश्वार-तर है अगर उस की चश्म-ए-इनायत नहीं है यूँ ख़ुद में है गुम हर कोई आज जैसे किसी को किसी की ज़रूरत नहीं है कहाँ ले के बैठे हो तुम रिश्ते नाते यहाँ भाई भाई में उल्फ़त नहीं है दिफ़ा अपना कोई करे भी तो कैसे कि वो हौसला वो शुजाअ'त नहीं है न हैं मोहतसिब वो न है दार कोई मगर मुझ में सच की जसारत नहीं है तिरी कार-फ़रमाइयाँ देखने की किसी भी नज़र में बसारत नहीं है बना वक़्त 'अनवर' के ज़ख़्मों का मरहम तिरी चारागर अब ज़रूरत नहीं है