कभी 'अंजुम' उसे होश्यार तो कर कोई नाला पस-ए-दीवार तो कर दिल-ए-बेताब को तस्कीन तो हो न दे बोसा मगर इक़रार तो कर कहीं माशूक़ तो मशहूर तो हो हमें रुस्वा सर-ए-बाज़ार तो कर तुझे मालूम तो हो हाल मेरा ज़रा आने का तू इंकार तो कर इन्हें 'अंजुम' कभी तू देख तो ले कसी दिन हाल-ए-दिल इज़हार तो कर