कभी बालों को सुलझाया तो होता मुझे शाने से उलझाया तो होता बिगड़ जाता अभी मुँह आइने का तुम्हारे रू-ब-रू आया तो होता गुल-ए-यूसुफ़ ज़ुलेख़ाई दिखाता चमन में वो अज़ीज़ आया तो होता ज़बान-ए-बोसा-ए-लब दे कर ऐ यार न दीदे दिल को ललचाया तो होता मुझे वारफ़्तगी जाने न देती व-लेकिन तुम ने बुलवाया तो होता वो कहते ग़ैर से कहते पर ऐ दिल ज़बाँ पर मुद्दआ' लाया तो होता रुख़-ए-रनगीं तिरा गर देखता गुल न उड़ जाता तो पत्ताया तो होता सहारे पर सहर होती शब-ए-हिज्र न आते वा'दा फ़रमाया तो होता न पाया तुम को मैं ने तो गिला क्या कभी ख़ुद आप को पाया तो होता मसीहाई न करता गो वो काफ़िर जनाज़े पर मिरे आया तो होता न देता ले के दिल वो पर बला से मिरा दिल हाथ में लाया तो होता मैं था गुम-कर्दा-ए-इश्क़-ए-कमर यार कभी अन्क़ा से ढूँढवाया तो होता मैं करता शुक्र-ए-मुक़द्दम में फ़िदा जाँ फ़रिश्ता मौत का आया तो होता न रहता दस्त-ए-वहशत आस्तीं में जुनूँ ने पाँव फैलाया तो होता मैं उड़ चलता ब-रंग-ए-सौत-ए-नाक़ूस 'वक़ार' उस बुत ने बुलवाया तो होता