कभी चंदा कभी सूरज कभी तारे सँभाले हैं सुख़नवर के मुक़द्दर में मगर पैरों के छाले हैं हमारी बे-गुनाही का यक़ीं उन को हुआ ऐसे वो जिन को चाहते हैं अब उन्हीं के होने वाले हैं मिरी भूकी निगाहों में शराफ़त ढूँडने वाले तिरी सोने की थाली में मिरे हक़ के निवाले हैं हमारी झोंपड़ी का क़द बहुत ऊँचा नहीं लेकिन तिरे महलों के सब क़िस्से हमारे देखे भाले हैं भरी महफ़िल में आ के पूछते हैं हाल मेरा वो तकल्लुफ़ भी निराला है इरादे भी निराले हैं चलो अब इस जहाँ की सोच से नज़रें हटा लें हम जहाँ तक देखते हैं हर किसी के हाथ काले हैं डुबो कर मेरे ख़्वाबों का सफ़ीना पार उतरो तुम और इस 'एहसास' के सपने तो लहरों के हवाले हैं