मिरी आँखों से ऐसे दर्द का रिश्ता निकल आया जिसे रक्खा निगाहों में वही क़तरा निकल आया वो जिस को सारी दुनिया की ख़ुदा ने बख़्श दी दौलत उसी के घर मिरा खोया हुआ काँसा निकल आया मैं दसरथ माँझी का क़िस्सा भी इस मिसरे में कहता हूँ किसी की ज़िद के आगे नूर का रस्ता निकल आया जो उस ने कह दिया गर वाह बिन समझे ग़ज़ल मेरी मिरे सर भी कई अल्फ़ाज़ का ख़र्चा निकल आया है कुछ तो क़ाफ़िया बढ़िया ज़रा मुझ में भी सस्ती है बड़ी मुश्किल है तेरी याद का सदमा निकल आया ज़रा सी देर में सारा फ़साना लिख गए क़ातिल बनाई बरसों की बुनियाद पे झगड़ा निकल आया मैं तेरे इश्क़ की बातों को कैसे हू-ब-हू लिख दूँ कहीं क़तरा निकल आया कहीं दरिया निकल आया बड़ी मुश्किल में हूँ दिलबर अलग अंदाज़ से तेरे यूँ कैसे झील सी आँखों में ये सहरा निकल आया ग़ज़ल में मुझ को अपनी बात कहने का सलीक़ा दे ज़रा से इल्म से 'एहसास' पर ख़तरा निकल आया