कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए तमाम उम्र गुज़ारी हवा से लड़ते हुए हुए न ज़ेर किसी इंतिहा से लड़ते हुए महाज़ हार गए हम क़ज़ा से लड़ते हुए बिखर रहा हूँ फ़ज़ा में ग़ुबार की सूरत ख़िलाफ़-ए-मस्लहत अपनी अना से लड़ते हुए फ़ज़ा बदलते ही जाग उट्ठी फ़ितरत-ए-मय-कश शिकस्त खा गई तौबा घटा से लड़ते हुए क़लम की नोक से बहता रहा लहू मेरा हिसार-ए-ख़िल्क़त-ए-फ़िक्र-ए-रसा से लड़ते हुए जुनूँ नवर्द को मंज़र न कोई रास आया मरा तो शोख़ी-ए-आब-ओ-हवा से लड़ते हुए पहुँच सके न किसी ख़ुश-गवार मंज़िल तक तुम्हारी याद की ज़ंजीर-ए-पा से लड़ते हुए उन्हीं पे बंद हुआ इर्तिक़ा का दरवाज़ा फ़ना हुए हैं जो अपनी बक़ा से लड़ते हुए 'ज़फ़र' घिरे तो उसी रज़्म-ए-गाह-ए-हस्ती में हुए शहीद सफ़-ए-कर्बला से लड़ते हुए