कभी दूर तुम से न जा सका मैं तुम्हें कभी न भुला सका तिरा क़ुर्ब तो बड़ी दूर था तिरी गर्द को भी न पा सका तिरी याद की शब-ए-तार में मैं चराग़ तक न जला सका तिरा दर्द जाग उठा है फिर मैं न सो सका न सुला सका जो मोहब्बतों के थे दरमियाँ मैं वो फ़ासले न मिटा सका