कभी है आज और कल कभी है भला ये अहद-ए-विसाल क्या है हो वा'दा ईफ़ा कि तर्क-ए-उल्फ़त ये रोज़-मर्रा की टाल क्या है ज़बान बिगड़ी है आप ही की हमारा नुक़सान क्या है इस में ज़रा तुम्हीं पूछूँ दिल से अपने भला ये तर्ज़-ए-मक़ाल क्या है जो माँगा इक बोसा मैं ने उन से तो बोले क्या तू सड़ी हुआ है ज़रा ये बातें सुनो तो लोगो जवाब क्या है सवाल क्या है उन्हें सर-ए-रह अकेला पा कर ये बोला छाती से मैं लगा कर कि अब तो फ़रमा दें बंदा-पर्वर विसाल में क़ील-ओ-क़ाल क्या है हैं तर्क-ए-उल्फ़त में हम भी राज़ी ये कह दो बे-खटके उस सनम से बुतों का इस हिन्द की ज़मीं पर ख़ुदा की रहमत से काल क्या है कड़ा रखे आदमी जो दिल को तो झेल ले हर कड़ी को आसाँ बंधी हुई हो जो अपनी हिम्मत तो काम कोई मुहाल क्या है ये कैसी हैं ठंडी साँसें 'कैफ़ी' कहीं तो आया है आप का दिल ये मुँह निकल आया क्यूँ ज़रा सा बताइए तो कि हाल क्या है