ख़ुदा भी तरफ़-दार निकला तुम्हारा ये झगड़ा चुका अब हमारा तुम्हारा बुतो शौक़-ए-दीदार से सर न चढ़ना नज़ारा किसी का तमाशा तुम्हारा बड़े बा-हया और पर्दा-नशीं हो है हर कू-ओ-बर्ज़न में चर्चा तुम्हारा उलू में ही झूटा हूँ पैमाँ-शिकन हूँ नहीं अब तो कुछ मुझ से शिकवा तुम्हारा दिल आए न क्यूँ क्यूँ न ईमान जाए ये सूरत तुम्हारी ये ग़म्ज़ा तुम्हारा दिल-ओ-जान 'कैफ़ी' है क़ुर्बान तुम पर नहीं इस से इंकार ज़ेबा तुम्हारा