कभी हवा तो कभी ख़ाक-ए-रहगुज़र होना मिरे नसीब में लिखा है दर-ब-दर होना अगर चलो तो मिरे साथ ही चलो लेकिन कठिन सफ़र से ज़ियादा है हम-सफ़र होना उदास उदास ये दीवार-ओ-दर बताते हैं कि जैसे रास न हो उन को मेरा घर होना क़दम उठे भी नहीं और सफ़र तमाम हुआ ग़ज़ब है राह का इतना भी मुख़्तसर होना ये दौर-ए-कम-नज़राँ है तो फिर हुनर का ज़ियाँ जो एक बार न होना तो बेशतर होना