ज़ुल्फ़ तेरी हुई कमंद मुझे इस में बाँधा है बंद बंद मुझे ख़ाक सेती सजन उठा के किया इश्क़ तेरे ने सर-बुलंद मुझे तेरे ग़म सूँ हुआ हूँ दीवाना न किया नफ़अ कोई पंद मुझे नहीं जग बीच और ऐ दिलबर वस्ल बिन तेरे सूद-मंद मुझे मैं गिरफ़्तार हूँ तिरे मुख पर जग में नईं और कुछ पसंद मुझे 'फ़ाएज़' इस तौर से हुआ है मलूल तूँ जलाता है जियूँ सिपंद मुझे