कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे तिरे तसव्वुर में हम ने कर ली किताब आगे वो ब'अद-ए-मुद्दत मिला तो रोने की आरज़ू में निकल के आँखों से गिर पड़े चंद ख़्वाब आगे दिल-ओ-नज़र में ही अपने ख़ेमे लगा लिए हैं हमें ख़बर है कि रास्ता है ख़राब आगे नज़र के हैरत-कदे में कब का खड़ा हुआ हूँ इक आइने में खिला हुआ है गुलाब आगे गुज़रने वाला था रह-गुज़ार-ए-हयात से मैं वो एक लम्हा कि आ गए फिर जनाब आगे 'हसन' जो माज़ी का सफ़हा उल्टा तो आ गए हैं खजूर के पेड़ टीले और माहताब आगे