कभी जो होगी विसाल की शब क़रीब वो ख़ुश-जमाल होगा तो रक़्स साँसें करेंगी और धड़कनों में मेरी धमाल होगा नए सफ़र में मगन हो लेकिन कभी जो थक कर निढाल होगे तो मुझ से दामन छुड़ा के जाने का तुम को बेहद मलाल होगा उमीद पर है ये दुनिया क़ाएम सो हम भी हैं मुंतज़िर तुम्हारे कभी तो क़ुर्बत भी होगी हासिल कभी तो ये भी कमाल होगा हमारी आँखों के जलते जुगनू बुझा के जो मुस्कुरा रहे हो ये मत समझना कि हश्र में भी न तुम से कोई सवाल होगा करो न इतना मलाल 'अज़्का' बड़ा ग़फ़ूर-उर-रहीम है रब तुम्हारे सब्र-ओ-रज़ा से ज़ख़्म-ए-जिगर का भी इंदिमाल होगा