कभी जो मुज़्तरिब ये दिल रहा है By Ghazal << कैसे टूटा है आइना दिल का हर तरफ़ इक बेबसी सी इन दि... >> कभी जो मुज़्तरिब ये दिल रहा है तो फिर जीना बहुत मुश्किल रहा है उसी को मुंसिफ़ी सौंपी गई है ज़रा पहले जो इक क़ातिल रहा है वज़ाहत में हुए तुम सर्फ़ जिस की वो मौज़ूअ' हम पे कब मुश्किल रहा है हमारी कश्तियाँ टूटी बहुत हैं मगर तक़दीर में 'साहिल' रहा है Share on: