कैसे टूटा है आइना दिल का कौन पूछेगा माजरा दिल का रूठ कर ख़ुद ही मान जाता है चलता रहता है सिलसिला दिल का क्या ख़बर कब किसी पे आ जाए क्या भरोसा है बे-वफ़ा दिल का अब कलेजा न मुँह को आ जाए हम ने माना था बस कहा दिल का दिल से उम्मीद दिल को होती है दिल ही होता है आसरा दिल का लोग पत्थर को दिल समझते हैं और बनाते हैं आइना दिल का